Saturday, April 10, 2010

समीप होते हुए

वे खड़े  हैं
बाहें फैलाये..
हमें आलिंगनबद्ध करने को
आतुर
अपने शोरूम पर करते हैं
आकर्षक प्यार का
प्रदर्शन
और हम
इस कंक्रीटों के जंगल में
उनके प्यार को
चिरस्थायी समझ
सानंदित होते हैं. 
                      -दिलीप गुप्ता

Calander

अंधेरे में

मुक्तिबोध की कालजयी कविता 'अंधेरे में' के प्रकाशन का यह पचासवाँ वर्ष है। इस आधी सदी में हमने अपने लोकतंत्र में इस कविता को क्रमशः...