Sunday, February 13, 2011

एक अपारंपरिक तस्वीर के सार्वभौमिक मायने


प्रस्तुत तस्वीर दक्षिण अफ़्रीकी फोटोग्राफर JODI BIEBER की है और इसे 2010 के
प्रतिष्ठित वर्ल्ड प्रेस फोटो अवार्ड से सम्मानित किया गया है.यह तस्वीर बीबी आयसा
नाम की एक अफ़गानी स्त्री की है जिसके नाक और कान उसके पति ने काट लिए थे
क्योंकि वह उसे छोड़कर चली गयी थी और इस अर्थ में यह तस्वीर उस पुरुष की मर्दानगी नहीं उसकी दिमागी नपुंसकता को उजागर करती है.

9 अगस्त 2010 के TIME के आवरण पर भी अवतरित यह तस्वीर लगभग हर अफ़गानी स्त्री की पीड़ा और भावनायें व्यक्त करती है.

इससे पूर्व भी 2002 में नेशनल जिओग्राफिक के लिए ली गई छायाकार व पत्रकार
STEVE MCcURRY की सरबत ग़ुला(फूलो का शरबत) नाम की एक देहाती, अफ़गानी लड़की की तस्वीर युद्ध की विभीषिका के बीच अपनी बहुत सुन्दर चमकती हुई आखों के लिए सारी दुनिया में जानी गई थी.

और अब यह प्रस्तुत तस्वीर जिसने एक बार फिर अपनी अपारंपरिक सुन्दरता के कारण
सबका ध्यान आकर्षित किया है, ऐसा क्यों है इस पर इसके रचयिता JODI BIEBER
कहते हुए... Women in situations like that are almost always portrayed as vulnerable in this one AISHA is looking quite
defiant...

यह तस्वीर सुन्दर है इसलिए क्योंकि इसका स्रोत अपनी आन्तरिकता और स्व में
अत्यंत प्रबल है, यह चित्र नितांत अपारंपरिक होते हुए भी उन मूल उत्सों से आया हुआ लगता है जहाँ सारी कलायें खुद को स्थानीय होते हुए भी एक सार्वभौमिकता
में व्यक्त करती हैं और यही इसकी सार्थकता भी है...

Saturday, February 12, 2011

ये सर्दियाँ कुछ सरल हो गई थी, जब एक बेतरह सर्द मौसम में आरंभ हुआ
इस वर्ष का भारतीय रंग महोत्सव अपनी अंतिम और मूक प्रस्तुति INHABITED
GEOMETRY के साथ समाप्त हुआ, इस दरमियान ज्यादातर बौद्धिक प्रपंच से भरी
कलाबजिया हुई या प्रोजेक्ट्स या कोरियोग्राफियन मंचीय दुरूपयोग या रूढ़ रंगकर्म
और इस दरमियान ही मानव कौल की पार्क, लुसियन दुबे की सलाम इंडिया,
सुनील शानबाग की ड्रीम्स आव् तालीम, हेसनम तोम्बा की समानद्रबा मामी,
गौरी रामनारायण की मैथमैजीसियन,ज़िया मोह्येद्दीन की ख्वाबों के मुसाफिर,
ज्योतिष एम. जी.की सागर कन्या और अलेक्सी कुज्हेल्न्य की आल अबाउट लव
जैसी कुछ शानदार प्रस्तुतियाँ भी हुई, यह हर बार की ही तरह था, जहाँ
बहुत कुछ रद्द करते हुए कुछ न कुछ बेहतर हाथ आता ही रहा है, लेकिन यहाँ
बस तथ्यों, गुणों और दोषों को क्रमवार सजा भर देना मकसद नहीं है और न ही किसी
ज्ञान व सुचना आधारित विवेचन में उलझना या उलझाना. यहाँ बस कुछ
असहमतियाँ है और कुछ दुःख कि कैसे वे रंगमंच को एक सीमित, जटिल और
विलासिता की वस्तु में तब्दील कर रहे है, क्यों वे एक तय परिवेश में खुद
को ध्वस्त कर रहे हैं जबकि वे कुछ विस्तृत, कुछ सरल और कुछ प्रतिबद्ध
होकर सबके लिए प्रासंगिक और उपलब्ध हो सकते हैं........

....और इस सबसे गुज़रते हुए हम कैसे इस तरह के रंगमंच से एक आत्मीय
और सारगर्भित सम्बन्ध कायम कर सकते जो खुद जुड़ना नहीं चाहता,
जबकि वह सीधे-सीधे जुडाव और संवाद का माध्यम रहा है कम से कम अब तक तो,
यह परम्परा आगामी कल में भी बनी रहे इस पर सोचना सिर्फ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
का ही काम नहीं है ये जानते हुए भी ये तो कहा ही जा सकता है कि इस पर सोचना
उसका एक दायित्व है रंगकर्म से जुड़े उसके और भी कई अन्य दायित्वों कि तरह.....

Calander

अंधेरे में

मुक्तिबोध की कालजयी कविता 'अंधेरे में' के प्रकाशन का यह पचासवाँ वर्ष है। इस आधी सदी में हमने अपने लोकतंत्र में इस कविता को क्रमशः...