संसाधनों का आभाव कभी भी रचनात्मकता के आड़े नहीं आ सकता. रंगमच में ऐसे जुझारूपन एवं कर्मठता के उदाहरण बहुत हैं, पर फिल्म निर्माण में इसे दुस्साहस का ही नाम दिया जा सकता है. मात्र एक हैंडी कैम के सहारे फिल्म बनाने की जिद का ही नतीजा है 'द फ़ॉग'. युवा रंगकर्मी नरेश डबराल की ये फिल्म अपने तकनीकी स्तरों पर बिलकुल साधारण है पर कथ्य के स्तर पर प्रभावित करती है. फिल्म मेट्रो पोलिटन शहर का दबाव, असुरक्षा के बढ़ते घेरे में सिमटे आम आदमी की अभिव्यक्ति है. फिल्म अपने वैयाकरनिक मापदंडों पर भले खरी न उतरे पर ये विचार तो हमें झकझोरता ही है की क्या हम सच में घर के बाहर खुली हवा में भयमुक्त रहने के लिए सहज हैं?
मैं धन्यवाद देता हूँ इनके इमानदार प्रयास के लिए. इंतज़ार है आपकी प्रतिक्रियाओं का...
Calander
अंधेरे में
मुक्तिबोध की कालजयी कविता 'अंधेरे में' के प्रकाशन का यह पचासवाँ वर्ष है। इस आधी सदी में हमने अपने लोकतंत्र में इस कविता को क्रमशः...
-
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के द्वितीय वर्ष के छात्रों द्वारा प्रस्तुत "1084 की माँ" को देखने के लिए जब मैं अभिमंच सभागार में पहुँच स...
-
हम सब बंदी हैं. हाँ, हममे से कुछ झरोखेयुक्त कारागृहों में बंद हैं और कुछ बिना झरोखे वाले कारागृहों में.
-
संसाधनों का आभाव कभी भी रचनात्मकता के आड़े नहीं आ सकता. रंगमच में ऐसे जुझारूपन एवं कर्मठता के उदाहरण बहुत हैं, पर फिल्म निर्माण में इसे दु...