वे अभिवादन में झुकते थे
जबकि इतना निर्जन हुआ करता था सभागार
की वे लगभग खुद के लिए ही खेल रहे होते थे
एक विराट खालीपन था और उसमे एक मध्यांतर भी
जहाँ वे सतत प्रस्तुति के पूर्वाभ्यास में ही रहते थे
सृष्टि के सबसे प्राचीनतम नाट्य सिद्धांतों और उनमे समाहित
प्रार्थनाएं, संभावनाएं, प्रक्रियाएं, लक्ष्य और निष्कर्ष
सब कुछ को मंच पर संभव करते थे वे
एक समय में एक नगर के एक सरल नागरिकशास्त्र से बचकर
स्वयं को आश्चर्यों और कल्पनालोक के
वृहत्तर परिवेश में रद्द करते हुए
वे बहुत बहुत दुर्लभ थे
मैं नींद में चलते हुए पहुँचता था
उनकी प्रस्तुतियों के अन्धकार में
जहाँ अभिनय वास्तविक हो उठता था
और वास्तविकताएं अश्लील
वे अपने निर्धारित समय से बहुत पीछे होने के दर्प में थे
यह उनका प्रतिभाष्य था एक वाचाल समय के विरुद्ध
जहाँ नाटकीयता अर्जित नहीं करनी पड़ती थी
वह जीवन में ही थी अन्य महत्वपूर्ण वास्तविकताओं की तरह .
-अविनाश मिश्र
(अविनाश मिश्र की यह अप्रकाशित कविता है)
Calander
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