Saturday, February 12, 2011

ये सर्दियाँ कुछ सरल हो गई थी, जब एक बेतरह सर्द मौसम में आरंभ हुआ
इस वर्ष का भारतीय रंग महोत्सव अपनी अंतिम और मूक प्रस्तुति INHABITED
GEOMETRY के साथ समाप्त हुआ, इस दरमियान ज्यादातर बौद्धिक प्रपंच से भरी
कलाबजिया हुई या प्रोजेक्ट्स या कोरियोग्राफियन मंचीय दुरूपयोग या रूढ़ रंगकर्म
और इस दरमियान ही मानव कौल की पार्क, लुसियन दुबे की सलाम इंडिया,
सुनील शानबाग की ड्रीम्स आव् तालीम, हेसनम तोम्बा की समानद्रबा मामी,
गौरी रामनारायण की मैथमैजीसियन,ज़िया मोह्येद्दीन की ख्वाबों के मुसाफिर,
ज्योतिष एम. जी.की सागर कन्या और अलेक्सी कुज्हेल्न्य की आल अबाउट लव
जैसी कुछ शानदार प्रस्तुतियाँ भी हुई, यह हर बार की ही तरह था, जहाँ
बहुत कुछ रद्द करते हुए कुछ न कुछ बेहतर हाथ आता ही रहा है, लेकिन यहाँ
बस तथ्यों, गुणों और दोषों को क्रमवार सजा भर देना मकसद नहीं है और न ही किसी
ज्ञान व सुचना आधारित विवेचन में उलझना या उलझाना. यहाँ बस कुछ
असहमतियाँ है और कुछ दुःख कि कैसे वे रंगमंच को एक सीमित, जटिल और
विलासिता की वस्तु में तब्दील कर रहे है, क्यों वे एक तय परिवेश में खुद
को ध्वस्त कर रहे हैं जबकि वे कुछ विस्तृत, कुछ सरल और कुछ प्रतिबद्ध
होकर सबके लिए प्रासंगिक और उपलब्ध हो सकते हैं........

....और इस सबसे गुज़रते हुए हम कैसे इस तरह के रंगमंच से एक आत्मीय
और सारगर्भित सम्बन्ध कायम कर सकते जो खुद जुड़ना नहीं चाहता,
जबकि वह सीधे-सीधे जुडाव और संवाद का माध्यम रहा है कम से कम अब तक तो,
यह परम्परा आगामी कल में भी बनी रहे इस पर सोचना सिर्फ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
का ही काम नहीं है ये जानते हुए भी ये तो कहा ही जा सकता है कि इस पर सोचना
उसका एक दायित्व है रंगकर्म से जुड़े उसके और भी कई अन्य दायित्वों कि तरह.....

Calander

अंधेरे में

मुक्तिबोध की कालजयी कविता 'अंधेरे में' के प्रकाशन का यह पचासवाँ वर्ष है। इस आधी सदी में हमने अपने लोकतंत्र में इस कविता को क्रमशः...