Wednesday, March 31, 2010

Khalil Zibran ko Padte hue....

हम सब बंदी हैं. हाँ, हममे से कुछ झरोखेयुक्त कारागृहों में बंद हैं और कुछ बिना झरोखे वाले कारागृहों में. 

Calander

अंधेरे में

मुक्तिबोध की कालजयी कविता 'अंधेरे में' के प्रकाशन का यह पचासवाँ वर्ष है। इस आधी सदी में हमने अपने लोकतंत्र में इस कविता को क्रमशः...